कुछ देर पढ़कर उसने नज़र उठाई तो चैटिंग अब भी जारी थी..अचानक मेजबान के मोब. पर एस.एम.एस. आने की सुचना ‘बजी’ …मेजबान ने लेपटॉप से नज़र उठाकर आदर्श पर से घुमाते हुए मोबाइल पर डाली , हाथ में लेकर सन्देश पढ़ा और तत्परता से उत्तर दिया …फिर नज़र उठाकर आदर्श पर से घुमाते हुए लेपटॉप पर ….चैटिंग पर जवाब देते-देते फिर मोब. पर सन्देश बजा …इस बार नज़र लेपटॉप से हटी तो सीधे मोबाइल पर टिकी ..आदर्श किनारे कर दिया गया था. व्यावसायिक कामों में घंटाभर आराम से प्रतीक्षारत रहने वाले आदर्श को दो मिन. बाद ही बेचैनी होने लगी थी …मैंने आने की पूर्व सुचना भी दी श्रीमंत ने स्वीकृति भी दी थी पर यह तो ‘बिजी’ लग रहा है ..यह विचार आते ही मन पढने से उचट गया ..दोबारा लगाने का प्रयास भी नहीं किया ..ऐसा ही है वह, एक बार मन हट जाये तो दोबारा कभी कोशिश नहीं करता . मोबाइल सन्देश / चैट सन्देश बदस्तूर जारी थे तभी बैठककक्ष में भाभीजी आई -”चाय लेंगे ?” उसने ना में गर्दन हिलाई भाभी जी जल्दी में थी दोबारा रसोई की और लौट गई ..उसे लगा जैसे उसके ना को सुनने के पहले ही भाभीजी ने लौटना तय कर उस पर अमल आरम्भ कर दिया था..सहसा उसे गले में कुछ कड़वाहट महसूस हुई …आवश्यकता अनुभव होने पर भी वह पानी नहीं मांग पाया . अभी -अभी महसूस हुई कड़वाहट का ही असर था शायद वह . नज़र यूँ ही इधर-उधर घूमने लगी
..श्रीमंत के दाहिनी ओर पानी की बोतल रखी हुई थी ..उसकी नज़र में बोतल का आना और श्रीमंत का बोतल की ओर हाथ बढ़ाना एक साथ ही हुआ ..यंत्रवत श्रीमंत ने बोतल खोली और दो घूंट भरे इतने अंतराल में दोनों प्रकार की चैटिंग से ध्यान हटा था सो दृष्टी आदर्श की ओर फेंकी साथ ही छोटी से मुस्कान भी फिर ढक्कन बंद कर बोतल रख दी और फिर चैटिंग …अब गले में कुछ सूखापन लगा , लगा कुछ अटक रहा है , याद आया बाइक की डिक्की में पानी है -”वही ले आता हूँ” सोचकर आदर्श उठा और दरवाजे की ओर बढ़ा “यार बैठ न , जा रहा है क्या ? ऐसी जल्दी क्या है …? भाई समय लेकर आना चाहिए न दोस्तों के पास..एक काम कर रविवार को आ सुबह …अरे नहीं यार सुबह तो “कार वाशिंग” करनी है , दोपहर में आ …नहीं शाम को आ …पर फोन कर लेना ..कही निकले नहीं हम लोग तो अपन साथ में चाय पियेंगे …ठीक है ..बहुत दिन हो गए साथ में बैठकर गप्पे मरने को …आ रविवार को आ …” श्रीमंत बोलते जा रहा था, उत्तर सुनने के लिए रुकना भी शायद ‘चैटिंग’ में खलल डाल देता , उधर आदर्श का ‘कड़वाहट’ के मारे दम निकला जा रहा था , बिना भागे जितनी जल्दी वह जा सकता था वहां से निकल गया ..मन खिन्न था, और खिन्नता के मारे चाय की तलब लगने लगी थी ..घडी देखि , ८-१०…सीधे घर आ गया , मन पर छाई उदासी दूर नहीं हुई थी अब तक ..
ध्यान हटाने के लिए फेसबुक पर लोग इन किया ..नोटिफिकेशन में श्रीमंत द्वारा विडिओ क्लिप में टैग किये जाने का नोटिफिकेशन भी था ..खोलकर देखा तो “ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे …तोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ ना छोड़ेंगे ” इस प्रसिद्द फ़िल्मी गीत का कार्टून वर्जन था …था तो एनिमेटेड वर्जन पर हिन्दुस्थान में इसे कार्टून ही कहने का रिवाज है …ये दोस्ती हम नहीं का कार्टून देखते देखते पत्नी पास में ‘चाय’ रख गई , बिना मांगे ..बिना पूछे ..पसंद और जरुरत जानकर खाना बनाते बनाते भी वो रुकी थी चाय बनाने के लिए …एक बड़ा घूंट लेते ही गले की कड़वाहट दूर हो गई ..हलकी ख़ुशी और गहरी तृप्ति चेहरे पर आ गई -” ओह ! शानदार मीठी और कड़क ” ..दोस्ती का कार्टून अब भी चल रहा था .
-संदीप भालेराव